अनजाने जज़ीरों पर
क़दम रखने से पहले
जान लो कि
बे-आबाद जगह आसेब-ज़दा भी हो सकती है
बस्ती बसाने से पहले जिन की ख़ुश-नूदी लाज़िम आती है
बसे रहने का मुआवज़ा
कलाबत्तूनी पहना दे
ज़र्क़ चढ़ावे
मुरस्सा कुंदनी पर्नियाँ हैं
अशरफ़ी बोटी वाले कम-ख़्वाब का
सरबार भी अदा करना होता है
वर्ना
उन के उस्लू-ए-बहयात से इंहिराफ़
अल-अक़ारिब अल-अक़रब
हासिल-ए-हयात रहेगा
आफ़ियत महाजनी मिज़ाज का तक़ाज़ा पूरा करने में है
वर्ना जान रखो
हवस का आसेब इकाती उखेड़ फेंकने में
तअम्मुल न करेगा
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