टटोलो परख लो चलो आज़मा लो
ख़ुदा की क़सम बा-ख़ुदा आदमी हूँ
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उसे न मिलने की सोचा है यूँ सज़ा देंगे
नज़र समेटें बटोर कर इंतिज़ार रख दें
ज़ियाँ गर कुछ हुआ तो उतना जितना सूद होता है
शहर में आ ही गए हैं तो गुज़ारा कर लें
किसी का तीर किसी की कमाँ हो ठीक नहीं
कभी मय-कदा कभी बुत-कदा कभी काबा तो कभी ख़ानक़ाह
शाकी बद-ज़न आज़ुर्दा हैं मुझ से मेरे भाई यार
इक्का दुक्का शाज़-ओ-नादिर बाक़ी हैं
अहम आँखें हैं या मंज़र खुले तो
निराला अजब नक-चढ़ा आदमी हूँ
आ तिरे संग ज़रा पेंग बढ़ाई जाए