साल, पर साल, और फिर इस साल
मुंतज़िर हम थे मुंतज़िर हम हैं
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किसी का तीर किसी की कमाँ हो ठीक नहीं
ज़मीं चिल्लाई चीख़ी बिलबिला के
शाकी बद-ज़न आज़ुर्दा हैं मुझ से मेरे भाई यार
उसे न मिलने की सोचा है यूँ सज़ा देंगे
टटोलो परख लो चलो आज़मा लो
कोई ऐसे वक़्त में हम से बिछड़ा है
शहर में आ ही गए हैं तो गुज़ारा कर लें
कभी मय-कदा कभी बुत-कदा कभी काबा तो कभी ख़ानक़ाह
आ तिरे संग ज़रा पेंग बढ़ाई जाए
ये कहो ये न कहो ऐसे कहो ऐसे नहीं
बड़ी सर्द रात थी कल मगर बड़ी आँच थी बड़ा ताव था