तुम में तो कुछ भी वाहियात नहीं
तुम में तो कुछ भी वाहियात नहीं
जाओ तुम आदमी की ज़ात नहीं
दिल में जो है वही ज़बान पे है
और कोई हम में ख़ास बात नहीं
सब को धुत्कारा दरकिनार किया
एक बस ख़ुद ही से नजात नहीं
खुल के मिलते हैं जिस से मिलते हैं
ज़ेहन में कोई छूत-छात नहीं
इक तअ'ल्लुक़ सभी से है लेकिन
सब से जाएज़ तअ'ल्लुक़ात नहीं
शाइ'री है ये शाइ'री साहब
ये शरीफ़ों के बस की बात नहीं
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