हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाए हुए हैं

हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाए हुए हैं

बे-वजह नहीं है कि जो शरमाए हुए हैं

थी जिन की तब ओ ताब से इस बज़्म की रौनक़

दीपक वो सर-ए-शाम ही कज्लाए हुए हैं

हर सम्त सियाही है घटा-टोप अंधेरा

क्या ज़ुल्फ़-ए-दोता आज वो बिखराए हुए हैं

हम ख़ूगर-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा आज हैं वर्ना

माज़ी में बहुत ठोकरें भी खाए हुए हैं

है बरबत-ए-दिल सख़्ती-ए-मिज़राब से लर्ज़ां

तल्ख़ी-ए-मोहब्बत का मज़ा पाए हुए हैं

ऐ दोस्त सुकूँ हम को मयस्सर नहीं होता

आशुफ़्तगी-ए-दहर से घबराए हुए हैं

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In Hindi By Famous Poet Shakir Khaliq. is written by Shakir Khaliq. Complete Poem in Hindi by Shakir Khaliq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.