Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_2efd79a06e5263ccd535d79ba65793ca, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
भुगत रहा हूँ ख़ुद अपने किए का ख़म्याज़ा - शाकिर ख़लीक़ कविता - Darsaal

भुगत रहा हूँ ख़ुद अपने किए का ख़म्याज़ा

भुगत रहा हूँ ख़ुद अपने किए का ख़म्याज़ा

टपक रहा है जो आँखों से ये लहू ताज़ा

किसी की याद के साए को हम-सफ़र समझा

लगा सको तो लगा लो जुनूँ का अंदाज़ा

किसे मजाल कि अब मेरे दिल में घर कर ले

है गरचे अब भी खुला अपने दिल का दरवाज़ा

निगार-ए-वक़्त ने हर-सू कमंद डाली है

बिखर न जाए कहीं अंजुमन का शीराज़ा

ख़ुदा गवाह है उन को भी दे रहा हूँ दुआ

जो कसते रहते हैं 'शाकिर' पे रोज़ आवाज़ा

(577) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Shakir Khaliq. is written by Shakir Khaliq. Complete Poem in Hindi by Shakir Khaliq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.