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उल्फ़त में बिगड़ कर भी इक वज़्अ निकाली है - शाकिर इनायती कविता - Darsaal

उल्फ़त में बिगड़ कर भी इक वज़्अ निकाली है

उल्फ़त में बिगड़ कर भी इक वज़्अ निकाली है

दीवाने की सज-धज ही दुनिया से निराली है

डाली है दो-आलम पर मिट्टी अभी डाली है

बस कुछ नहीं अब हम में या हिम्मत-ए-आली है

मिलती है बड़ी राहत इक ख़ाक-नशीनी में

मैं ने तो तबीअत ही मिट्टी की बना ली है

इस घर में बहुत कम है अब आमद ओ रफ़्त उस की

दुनिया की तरफ़ हम ने दीवार उठा ली है

क्या रक्खा है दीवाने इन अक़्ल की बातों में

बर-गश्ता-मिज़ाजी है आशुफ़्ता-ख़याली है

हासिल है करम उस को इक मुर्शिद-ए-कामिल का

'शाकिर' की दुआ ले लो 'शाकिर' ने दुआ ली है

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In Hindi By Famous Poet Shakir Inayati. is written by Shakir Inayati. Complete Poem in Hindi by Shakir Inayati. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.