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ज़िंदगी यूँ तो बहुत अय्यार थी चालाक थी - शकील शम्सी कविता - Darsaal

ज़िंदगी यूँ तो बहुत अय्यार थी चालाक थी

ज़िंदगी यूँ तो बहुत अय्यार थी चालाक थी

मौत ने छू कर जो देखा एक मुट्ठी ख़ाक थी

जागती आँखों के सपने दिल-नशीं तो थे मगर

मेरे हर इक ख़्वाब की ता'बीर हैबतनाक थी

आज काँटे भी छुपाए हैं लिबादों में बदन

इक ज़माने में तो फ़स्ल-ए-गुल भी दामन चाक थी

था हमें भी हर क़दम पे नाक कट जाने का डर

उन दिनों की बात है जब अपने मुँह पर नाक थी

था लड़कपन का ज़माना सरफ़रोशी से भरा

हम उसी तलवार पर मरते थे जो सफ़्फ़ाक थी

दोस्तों के दरमियाँ सच बोलते डरता है वो

दुश्मनों की भीड़ में जिस की ज़बाँ बे-बाक थी

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In Hindi By Famous Poet Shakeel Shamsi. is written by Shakeel Shamsi. Complete Poem in Hindi by Shakeel Shamsi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.