याद तुम आए तो फिर बन गईं बादल आँखें
याद तुम आए तो फिर बन गईं बादल आँखें
दिल के वीराने को करने लगीं जल-थल आँखें
मेरी आँखों का कोई अब्र से रिश्ता है ज़रूर
टूट के बरसी घटा जब हुईं बोझल आँखें
ख़्वाब को ख़्वाब समझती ही नहीं जाने क्यूँ
ढूँढती रहती हैं इक शख़्स को पागल आँखें
कैसा रिश्ता है तअ'ल्लुक़ है ये कैसा आख़िर
चोट तो दिल पे लगी हो गईं घायल आँखें
शोख़ियाँ शर्म-ओ-हया नूर के साए झेलें
उम्र में पहले-पहल देखें मुकम्मल आँखें
जिस तरह कोई ग़ज़ल लिक्खी हो मतले' के बग़ैर
यूँ नज़र आती हैं अक्सर बिना काजल आँखें
ऐ 'शकील' उन से कहो प्यार से वो दूर रहें
दर्द का बोझ न सह पाएँगी चंचल आँखें
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