Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_209a161ad5754141bfd67242f4b8644b, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
उस से गिले शिकायतें शिकवे भी छोड़ दो - शकील शम्सी कविता - Darsaal

उस से गिले शिकायतें शिकवे भी छोड़ दो

उस से गिले शिकायतें शिकवे भी छोड़ दो

दर उस का छुट गया तो दरीचे भी छोड़ दो

कैसा है वो कहाँ है बना किस का हम-सफ़र

बेहतर है कुछ सवाल अधूरे भी छोड़ दो

इक बेवफ़ा का नाम लिखोगे कहाँ तलक

औराक़ अपने माज़ी के सादे भी छोड़ दो

जीने के वास्ते न सहारे करो तलाश

जब डूब ही रहे हो तो तिनके भी छोड़ दो

शायद नए मकान में उन का न दिल लगे

घर छोड़ने लगो तो परिंदे भी छोड़ दो

जिस ने तुम्हें चराग़ों से महरूम कर दिया

उस की गली के चाँद सितारे भी छोड़ दो

दरिया से दूर रहना ही बेहतर है अब 'शकील'

धारे से कट गए तो किनारे भी छोड़ दो

(552) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Shakeel Shamsi. is written by Shakeel Shamsi. Complete Poem in Hindi by Shakeel Shamsi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.