बादशाहों की तरह और न वज़ीरों की तरह

बादशाहों की तरह और न वज़ीरों की तरह

हम तो दरवेश थे आए यहाँ पीरों की तरह

राज-महलों में कहाँ ढूँढ रहे हो हम को

हम तो अजमेर में रहते हैं फ़क़ीरों की तरह

हम भी इस मुल्क की तक़दीर का इक हिस्सा हैं

हम न मिट पाएँगे हाथों की लकीरों की तरह

जाँ-फ़िशानी से बहुत हम ने जड़े हैं आँसू

मादर-ए-हिन्द तिरे ताज में हीरों की तरह

दुश्मनों को तो यही बात बहुत खलती है

हम तो ग़ुर्बत में भी ज़िंदा हैं अमीरों की तरह

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In Hindi By Famous Poet Shakeel Shamsi. is written by Shakeel Shamsi. Complete Poem in Hindi by Shakeel Shamsi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.