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शाम मिरी कमज़ोरी है - शकील जाज़िब कविता - Darsaal

शाम मिरी कमज़ोरी है

मत पूछ ये मुझ से दोस्त मिरे

क्यूँ शाम ढले इन आँखों में

बे-नाम सी एक उदासी की

घनघोर घटाएँ रहती हैं

क्यूँ बे-ख़ुद हो कर इस लम्हे

ढलता हुआ सूरज तकता हूँ

आँखों में किसी का अक्स लिए

क्यूँ बदन किताबें तकता हूँ

मत पूछ ये वक़्त ही ऐसा है

मुझे दिल पर ज़ोर नहीं रहता

मैं लाख छुपाता हूँ लेकिन

अश्कों को रोक नहीं सकता

इक क़र्ज़ चुकाने की ख़ातिर

ये कुछ लम्हों की चोरी है

बस यूँही समझ ले यार मिरे

ये शाम मिरी कमज़ोरी है

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In Hindi By Famous Poet Shakeel Jazib. is written by Shakeel Jazib. Complete Poem in Hindi by Shakeel Jazib. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.