जाँ के ज़ियाँ को ग़म की तलाफ़ी समझ लिया

जाँ के ज़ियाँ को ग़म की तलाफ़ी समझ लिया

कम-हौसलों ने मौत को शाफ़ी समझ लिया

जो गुफ़्तुगू में सब से ज़रूरी था वो सुख़न

उन की समाअतों ने इज़ाफ़ी समझ लिया

इक शर्त-ए-जुस्तुजू भी थी मंज़िल के वास्ते

हम ने बस आरज़ू को ही काफ़ी समझ लिया

ख़ुद्दारी-ए-जुनूँ में इन आँखों ने तेरे ब'अद

अश्कों को भी वफ़ा के मुनाफ़ी समझ लिया

'जाज़िब' न जाने कौन सी दुनिया का शख़्स था

जिस ने सज़ाओं को भी मुआफ़ी समझ लिया

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In Hindi By Famous Poet Shakeel Jazib. is written by Shakeel Jazib. Complete Poem in Hindi by Shakeel Jazib. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.