तुम्हारे बा'द बड़ा फ़र्क़ आ गया हम में
तुम्हारे बा'द किसी पे ख़फ़ा नहीं हुए हम
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ये तिरी ख़ल्क़-नवाज़ी का तक़ाज़ा भी नहीं
सफ़र से लौट जाना चाहता है
सब से पहले दिल के ख़ाली-पन को भरना
अल्फ़ाज़ नर्म हो गए लहजे बदल गए
ग़म के पीछे मारे मारे फिरना क्या
इक बीमार वसीयत करने वाला है
इक बीमार वसिय्यत करने वाला है
मौत को हम ने कभी कुछ नहीं समझा मगर आज
उम्र का एक और साल गया
सारे भूले बिसरों की याद आती है
कोई स्कूल की घंटी बजा दे
कितने अख़बार-फ़रोशों को सहाफ़ी लिक्खा