शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा
सो अपने रस्ते में धूप दीवार हो रही है
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अश्क पीने के लिए ख़ाक उड़ाने के लिए
मसअला ख़त्म हुआ चाहता है
तुम शुजाअ'त के कहाँ क़िस्से सुनाने लग गए
वो लोग आएँ जिन्हें हौसला ज़ियादा है
अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता
उम्र का एक और साल गया
वफ़ादारों पे आफ़त आ रही है
थोड़ा सा माहौल बनाना होता है
खाने को तो ज़हर भी खाया जा सकता है
मौत को हम ने कभी कुछ नहीं समझा मगर आज
अपने ख़ून से इतनी तो उम्मीदें हैं