लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं
इश्क़ में इतना ख़सारा है तो घर जाते हैं
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इक बीमार वसिय्यत करने वाला है
तुम शुजाअ'त के कहाँ क़िस्से सुनाने लग गए
झूट सच्चाई का हिस्सा हो गया
इक बीमार वसीयत करने वाला है
कितने अख़बार-फ़रोशों को सहाफ़ी लिक्खा
अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता
उल्टे सीधे सपने पाले बैठे हैं
अपने ख़ून से इतनी तो उम्मीदें हैं
मौत को हम ने कभी कुछ नहीं समझा मगर आज
इसी दुनिया के इसी दौर के हैं
मसअला ख़त्म हुआ चाहता है
खाने को तो ज़हर भी खाया जा सकता है