कोई स्कूल की घंटी बजा दे
ये बच्चा मुस्कुराना चाहता है
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किन ज़मीनों पे उतारोगे इमदाद का क़हर
कहानी में छोटा सा किरदार है
ये तिरी ख़ल्क़-नवाज़ी का तक़ाज़ा भी नहीं
हर कोने से तेरी ख़ुशबू आएगी
सफ़र से लौट जाना चाहता है
दिलों के माबैन शक की दीवार हो रही है
थोड़ा सा माहौल बनाना होता है
चाहत की लौ को मद्धम कर देता है
मौत को हम ने कभी कुछ नहीं समझा मगर आज
लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं
उम्र का एक और साल गया
अश्क पीने के लिए ख़ाक उड़ाने के लिए