झूट में शक की कम गुंजाइश हो सकती है
सच को जब चाहो झुठलाया जा सकता है
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Gulzar
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ये तिरी ख़ल्क़-नवाज़ी का तक़ाज़ा भी नहीं
मसअला ख़त्म हुआ चाहता है
सारे भूले बिसरों की याद आती है
इसी दुनिया के इसी दौर के हैं
रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगे
थोड़ा सा माहौल बनाना होता है
अल्फ़ाज़ नर्म हो गए लहजे बदल गए
किसी का साथ मियाँ जी सदा नहीं रहा है
हो गई है मिरी उजड़ी हुई दुनिया आबाद
ग़म के पीछे मारे मारे फिरना क्या