हो गई है मिरी उजड़ी हुई दुनिया आबाद
मैं उसे ढूँढ रहा हूँ ये बताने के लिए
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दुखों में उस के इज़ाफ़ा भी मैं ही करता हूँ
ज़िंदगी ऐसे भी हालात बना देती है
ये तिरी ख़ल्क़-नवाज़ी का तक़ाज़ा भी नहीं
सारे भूले बिसरों की याद आती है
किन ज़मीनों पे उतारोगे इमदाद का क़हर
दिलों के माबैन शक की दीवार हो रही है
मसअला ख़त्म हुआ चाहता है
रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगे
उल्टे सीधे सपने पाले बैठे हैं
झूट में शक की कम गुंजाइश हो सकती है
मौत को हम ने कभी कुछ नहीं समझा मगर आज
मैं ने हाथों से बुझाई है दहकती हुई आग