अपने ख़ून से इतनी तो उम्मीदें हैं
अपने बच्चे भीड़ से आगे निकलेंगे
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तुम शुजाअ'त के कहाँ क़िस्से सुनाने लग गए
तुम्हारे बा'द बड़ा फ़र्क़ आ गया हम में
रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगे
मसअला ख़त्म हुआ चाहता है
न कोई ख़्वाब कमाया न आँख ख़ाली हुई
मौत को हम ने कभी कुछ नहीं समझा मगर आज
इसी दुनिया के इसी दौर के हैं
झूट में शक की कम गुंजाइश हो सकती है
हो गई है मिरी उजड़ी हुई दुनिया आबाद
वफ़ादारों पे आफ़त आ रही है
कुछ लोग हैं जो झेल रहे हैं मुसीबतें
चाहत की लौ को मद्धम कर देता है