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पेट की आग बुझाने का सबब कर रहे हैं - शकील जमाली कविता - Darsaal

पेट की आग बुझाने का सबब कर रहे हैं

पेट की आग बुझाने का सबब कर रहे हैं

इस ज़माने के कई मीर मतब कर रहे हैं

कोई हमदर्द भरे शहर में बाक़ी हो तो हो

इस कड़े वक़्त में गुमराह तो सब कर रहे हैं

कहीं ख़तरे में न पड़ जाए बुज़ुर्गी अपनी

लोग इस ख़ौफ़ से छोटों का अदब कर रहे हैं

सब लिफ़ाफ़े की हुसूली के लिए हो रहा है

हम जो ये शग़्ल जो ये कार-ए-अदब कर रहे हैं

हर कोई जान हथेली पे लिए फिर रहा है

इन दिनों वो लब-ओ-रुख़्सार ग़ज़ब कर रहे हैं

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In Hindi By Famous Poet Shakeel Jamali. is written by Shakeel Jamali. Complete Poem in Hindi by Shakeel Jamali. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.