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तुम से ये कब कहा है कि अक्सर मिला करो - शकील जाफ़री कविता - Darsaal

तुम से ये कब कहा है कि अक्सर मिला करो

तुम से ये कब कहा है कि अक्सर मिला करो

मुझ से मिरे जुनूँ के बराबर मिला करो

मैं तुम से जब मिलूँ तो मुकम्मल मिला करूँ

तुम मुझ से जब मिलो तो सरासर मिला करो

नामा बराए निस्फ़ मुलाक़ात भूल जाओ

तकमील-ए-कार-ए-ख़ैर को आ कर मिला करो

मिलता नहीं वजूद के बाहर किसी से मैं

मुझ से मिरे वजूद के अंदर मिला करो

दाद-ए-जमाल-ओ-हुस्न समेटूँ बिला-हिसाब

मिलने के ब'अद मुझ से मुकर्रर मिला करो

मुझ से नहीं है ख़ास तअल्लुक़ तुम्हें तो फिर

औरों की तरह मुझ से भी हँस कर मिला करो

ये ठीक है कि सिर्फ़ तग़य्युर को है सबात

मिल कर बिछड़ने वालो बिछड़ कर मिला करो

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In Hindi By Famous Poet Shakeel Jafri. is written by Shakeel Jafri. Complete Poem in Hindi by Shakeel Jafri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.