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ये सिलसिला ग़मों का न जाने कहाँ से है - शकील ग्वालिआरी कविता - Darsaal

ये सिलसिला ग़मों का न जाने कहाँ से है

ये सिलसिला ग़मों का न जाने कहाँ से है

अहल-ए-ज़मीं को शिकवा मगर आसमाँ से है

यादों की रहगुज़ार से ख़्वाबों के शहर तक

इक सिलसिला ज़रूर है लेकिन कहाँ से है

मेरी किताब-ए-ज़ीस्त को ऐसे न फेंकिए

रौशन किसी का नाम इसी दास्ताँ से है

मंज़िल न पाई मैं ने मगर ये तो खुल गया

रिश्ता मिरे सफ़र का किसी कारवाँ से है

मौसम की हेर-फेर ने साबित ये कर दिया

कुछ मेरे जिस्म का भी तअल्लुक़ मकाँ से है

कहने को लोग क्या नहीं कहते 'शकील' को

सुनने का इश्तियाक़ तुम्हारी ज़बाँ से है

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In Hindi By Famous Poet Shakeel Gwaliari. is written by Shakeel Gwaliari. Complete Poem in Hindi by Shakeel Gwaliari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.