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जब क़ाफ़िला यादों का गुज़रा तो फ़ज़ा महकी - शकील ग्वालिआरी कविता - Darsaal

जब क़ाफ़िला यादों का गुज़रा तो फ़ज़ा महकी

जब क़ाफ़िला यादों का गुज़रा तो फ़ज़ा महकी

महसूस हुआ तेरे क़दमों की सदा महकी

ख़्वाबों में लिए हम ने बोसे तिरे बालों के

जब हिज्र की रातों में सावन की घटा महकी

माँगी जो दुआ हम ने उस शोख़ से मिलने की

लोबान की ख़ुशबू से बढ़ कर वो दुआ महकी

इक नर्म से झोंके की नाज़ुक सी शरारत से

क्या क्या न हुई रुस्वा डाली जो ज़रा महकी

दीवाना हूँ आशिक़ हूँ आवारा हूँ मय-कश हूँ

इल्ज़ाम कई आए जब लग़्ज़िश-ए-पा महकी

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In Hindi By Famous Poet Shakeel Gwaliari. is written by Shakeel Gwaliari. Complete Poem in Hindi by Shakeel Gwaliari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.