चाक कर कर के गरेबाँ रोज़ सीना चाहिए
चाक कर कर के गरेबाँ रोज़ सीना चाहिए
ज़िंदगी को ज़िंदगी की तरह जीना चाहिए
ख़ुद-कुशी के टल गए लम्हे तो सोचा मुद्दतों
ये ख़याल आया ही क्यूँ था ज़हर पीना चाहिए
मशवरा मौजों से लूँ उस पार जाना है मुझे
ना-ख़ुदाओं का तो कहना है सफ़ीना चाहिए
बा-सलीक़ा लोग भी हैं बे-सलीक़ा लोग भी
किस से कब मिलिए कहाँ मिलिए क़रीना चाहिए
जब उठे तूफ़ाँ तो कोई चीज़ ज़द में हो 'शकील'
हर बुलंदी के लिए इक आबगीना चाहिए
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