वो हवा दे रहे हैं दामन की
हाए किस वक़्त नींद आई है
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इहानत-ए-दिल-ए-सब्र-आज़मा नहीं करते
लतीफ़ पर्दों से थे नुमायाँ मकीं के जल्वे मकाँ से पहले
पी शौक़ से वाइज़ अरे क्या बात है डर की
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे
तकमील-ए-शबाब चाहता हूँ
खुल गया उन की आरज़ू में ये राज़
'शकील' इस दर्जा मायूसी शुरू-ए-इश्क़ में कैसी
इक शहंशाह ने बनवा के....
लम्हा लम्हा बार है तेरे बग़ैर
दिल के बहलाने की तदबीर तो है
सरगुज़िश्त-ए-दिल को रूदाद-ए-जहाँ समझा था मैं
जो दिल पे गुज़रती है वो समझा नहीं सकते