काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ
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कोई ऐ 'शकील' पूछे ये जुनूँ नहीं तो क्या है
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर तिरा क्या भरोसा है चारागर
मौसम-ए-गुल साथ ले कर बर्क़ ओ दाम आ ही गया
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
सर-निगूँ कर ही दिया शौक़-ए-जबीं-साई ने
तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
नुमायाँ दोनों जानिब शान-ए-फ़ितरत होती जाती है
तिरी यादों से दिल फ़रोज़ाँ करेंगे
भेज दी तस्वीर अपनी उन को ये लिख कर 'शकील'
मेरी दीवानगी नहीं जाती
शिकवा-ए-इज़्तिराब कौन करे