तम्हीद-ए-सितम और है तकमील-ए-जफ़ा और
तम्हीद-ए-सितम और है तकमील-ए-जफ़ा और
चखने का मज़ा और है पीने का मज़ा और
दोनों ही बिना-ए-कशिश-ओ-जज़्ब हैं लेकिन
नग़्मों की सदा और है नालों की सदा और
ऐ फ़ितरत-ए-ग़म ज़ीस्त ही क्या कम थी मुसीबत
नाज़िल हुई इस पर ये मोहब्बत की बला और
टकरा के वहीं टूट गए शीशा-ओ-साग़र
मय-ख़्वारों के झुरमुट में जो साक़ी ने कहा और
वो ख़ुद नज़र आते हैं जफ़ाओं पे पशेमाँ
क्या चाहिए अब तुम को 'शकील' इस के सिवा और
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