शिकवा-ए-इज़्तिराब कौन करे
अपनी दुनिया ख़राब कौन करे
गिन तो लेते हैं उँगलियों पे गुनाह
रहमतों का हिसाब कौन करे
इश्क़ की तल्ख़-कामियों के निसार
ज़िंदगी कामयाब कौन करे
हम से मय-कश जो तौबा कर बैठें
फिर ये कार-ए-सवाब कौन करे
ग़र्क़-ए-जाम-ए-शराब हो के 'शकील'
शग़्ल-ए-जाम-ओ-शराब कौन करे