सर-निगूँ कर ही दिया शौक़-ए-जबीं-साई ने
सर-निगूँ कर ही दिया शौक़-ए-जबीं-साई ने
नख़वत-ए-इश्क़ मिटा दी तिरी यकताई ने
होश इदराक से बेगाना बना कर इक बार
कोई करवट ही न बदली तिरी अंगड़ाई ने
बन गया बे-ख़ुद-ए-नज़्ज़ारा ब-अल्फ़ाज़-ए-दिगर
लाज रख ली तिरे जल्वों की तमाशाई ने
मुख़्तसर एक तो वैसे ही न थी क़ैद-ए-हयात
और मीआ'द बढ़ा दी शब-ए-तन्हाई ने
क़दर होने लगी अरबाब-ए-मोहब्बत में 'शकील'
मुझ को इंसान बनाया मिरी रुस्वाई ने
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