लतीफ़ पर्दों से थे नुमायाँ मकीं के जल्वे मकाँ से पहले
लतीफ़ पर्दों से थे नुमायाँ मकीं के जल्वे मकाँ से पहले
मोहब्बत आईना हो चुकी थी वजूद-ए-बज़्म-ए-जहाँ से पहले
न वो मिरे दिल से बा-ख़बर थे न उन को एहसास-ए-आरज़ू था
मगर निज़ाम-ए-वफ़ा था क़ाएम कुशूद-ए-राज़-ए-निहाँ से पहले
हर एक उन्वान-ए-दर्द-ए-फ़ुर्क़त है इब्तिदा शरह-ए-मुद्दआ की
कोई बताए कि ये फ़साना सुनाएँ उन को कहाँ से पहले
मसर्रतें राज़दार-ए-ग़म थीं मसर्रतों में अलम था पिन्हाँ
जभी तो सेहन-ए-चमन में शायद बहार आई ख़िज़ाँ से पहले
समझ रहा था कि ना-उमीदी न पर्दादार-ए-उमीद होगी
नज़र उठा कर जो मैं ने देखा ग़ुबार था कारवाँ से पहले
उठा जो मीना ब-दस्त-ए-साक़ी रही न कुछ ताब-ए-ज़ब्त बाक़ी
तमाम मय-कश पुकार उठ्ठे यहाँ से पहले यहाँ से पहले
क़सम फ़रेब-ए-निगाह-ओ-दिल की हमें तो उस जुस्तुजू ने खोया
वहीं थी दर-अस्ल अपनी मंज़िल क़दम उठे थे जहाँ से पहले
अज़ल से शायद लिखे हुए थे 'शकील' क़िस्मत में जौर-ए-पैहम
खुली जो आँखें इस अंजुमन में नज़र मिली आसमाँ से पहले
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