ख़िरद को आज़माना चाहता हूँ
जुनूँ की ज़द पे लाना चाहता हूँ
जो थी हासिल तिरी महफ़िल से पहले
उसी ख़ल्वत में जाना चाहता हूँ
न हों जिस में नुमायाँ हाल-ओ-माज़ी
कोई ऐसा ज़माना चाहता हूँ
तिरी ख़ातिर जिन्हें बेगाना समझा
उन्हें अपना बनाना चाहता हूँ
मोहब्बत पर पए-तर्क-ए-मोहब्बत
कोई तोहमत लगाना चाहता हूँ