हुई हम से ये नादानी तिरी महफ़िल में आ बैठे
हुई हम से ये नादानी तिरी महफ़िल में आ बैठे
ज़मीं की ख़ाक हो कर आसमान से दिल लगा बैठे
हुआ ख़ून-ए-तमन्ना उस का शिकवा क्या करें तुम से
न कुछ सोचा न कुछ समझा जिगर पर तीर खा बैठे
ख़बर की थी गुलिस्तान-ए-मोहब्बत में भी ख़तरे हैं
जहाँ गिरती है बिजली हम उसी डाली पे जा बैठे
न क्यूँ अंजाम-ए-उल्फ़त देख कर आँसू निकल आएँ
जहाँ को लूटने वाले ख़ुद अपना घर लुटा बैठे
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