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गुलशन हो निगाहों में तो जन्नत न समझना - शकील बदायुनी कविता - Darsaal

गुलशन हो निगाहों में तो जन्नत न समझना

गुलशन हो निगाहों में तो जन्नत न समझना

दम-भर की इनायत को मोहब्बत न समझना

क्या शय है मता-ए-ग़म-ओ-राहत न समझना

जीना है तो जीने की हक़ीक़त न समझना

हो ख़ैर तिरे ग़म की कि हम ने तिरे ग़म से

सीखा है मसर्रत को मसर्रत न समझना

निस्बत ही नहीं कोई मोहब्बत को ख़िरद से

ऐ दिल कभी मफ़्हूम-ए-मोहब्बत न समझना

ये किस ने कहा तुम से कि रूदाद-ए-वफ़ा को

सुन कर भी समझने की ज़रूरत न समझना

वीरानी-ए-माहौल को बर्बादी-ए-दिल को

हर दौर में आसार-ए-मोहब्बत न समझना

सर ख़म हो अगर मस्लहत-ए-वक़्त के आगे

इस जब्र-ए-मुसलसल को इबादत न समझना

देखे जो तुम्हें कोई मोहब्बत की नज़र से

लिल्लाह 'शकील' उस को मोहब्बत न समझना

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In Hindi By Famous Poet Shakeel Badayuni. is written by Shakeel Badayuni. Complete Poem in Hindi by Shakeel Badayuni. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.