दिल मरकज़-ए-हिजाब बनाया न जाएगा
दिल मरकज़-ए-हिजाब बनाया न जाएगा
उन से भी राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगा
सर को कभी क़दम पे झुकाया न जाएगा
उन के नुक़ूश-ए-पा को मिटाया न जाएगा
बे-वज्ह इंतिज़ार दिखाने से फ़ाएदा
कह दीजिए कि सामने आया न जाएगा
आँखों में अश्क क़ल्ब परेशाँ नज़र उदास
इस तरह उन को छोड़ के जाया न जाएगा
वो ख़ुद कहें तो शरह-ए-मोहब्बत बयाँ करूँ
नग़्मा बग़ैर साज़ सुनाया न जाएगा
बेहतर यही है ज़िक्र-ए-मोहब्बत न छेड़िए
नक़्शा बिगड़ गया तो बनाया न जाएगा
दिल की तरफ़ 'शकील' तवज्जोह ज़रूर हो
ये घर उजड़ गया तो बसाया न जाएगा
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