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बदले बदले मिरे ग़म-ख़्वार नज़र आते हैं - शकील बदायुनी कविता - Darsaal

बदले बदले मिरे ग़म-ख़्वार नज़र आते हैं

बदले बदले मिरे ग़म-ख़्वार नज़र आते हैं

मरहले इश्क़ के दुश्वार नज़र आते हैं

कश्ती-ए-ग़ैरत-ए-एहसास सलामत यारब

आज तूफ़ान के आसार नज़र आते हैं

इंक़लाब आया न जाने ये चमन में कैसा

ग़ुंचा-ओ-गुल मुझे तलवार नज़र आते हैं

जिन की आँखों से छलकता था कभी रंग-ए-ख़ुलूस

इन दिनों माइल-ए-तकरार नज़र आते हैं

जो सुना करते थे हंस हंस के कभी नामा-ए-शौक़

अब मिरी शक्ल से बेज़ार नज़र आते हैं

उन के आगे जो झुकी रहती हैं नज़रें अपनी

इस लिए हम ही ख़ता-वार नज़र आते हैं

दुश्मन-ए-ख़ू-ए-वफ़ा रस्म-ए-मोहब्बत के हरीफ़

वही क्या और भी दो-चार नज़र आते हैं

जिंस-ए-नायाब-ए-मोहब्बत की ख़ुदा ख़ैर करे

बुल-हवस उस के ख़रीदार नज़र आते हैं

वक़्त के पूजने वाले हैं पुजारी उन के

कोई मतलब हो तो ग़म-ख़्वार नज़र आते हैं

जाएज़ा दिल का अगर लो तो वफ़ा से ख़ाली

शक्ल देखो तो नमक-ख़्वार नज़र आते हैं

रोज़-ए-रौशन में अगर उन को दिखाओ तारे

वो ये कह देंगे कि सरकार नज़र आते हैं

हम न बदले थे न बदले हैं न बदलेंगे 'शकील'

एक ही रंग में हर बार नज़र आते हैं

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In Hindi By Famous Poet Shakeel Badayuni. is written by Shakeel Badayuni. Complete Poem in Hindi by Shakeel Badayuni. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.