कुछ दिनों के लिए मंज़र से अगर हट जाओ
ज़िंदगी भर की शनासाई चली जाती है
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बात से बात की गहराई चली जाती है
आख़िरी खिलौने का मातम
धूप से बर-सर-ए-पैकार किया है मैं ने
परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है
सिंगापुर
कच्चे रंगों का मौसम
जाने कैसा रिश्ता है रहगुज़र का क़दमों से
अपनी मंज़िल पे पहुँचना भी खड़े रहना भी
राज़ में रख तिरी रुस्वाई का क़िस्सा मैं हूँ
बस इक पुकार पे दरवाज़ा खोल देते हैं
झूटी मोहब्बत
इस बार उस की आँखों में इतने सवाल थे