इस बार उस की आँखों में इतने सवाल थे
मैं भी सवाल बन के सवालों में रह गया
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तुझ को सोचों तो तिरे जिस्म की ख़ुशबू आए
चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए
अब इस से मिलने की उम्मीद क्या गुमाँ भी नहीं
परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है
अपनी मंज़िल पे पहुँचना भी खड़े रहना भी
कुछ इस तरह से मिलें हम कि बात रह जाए
घर के दीवार-ओ-दर पे शाम ही से
फिर यूँ हुआ थकन का नशा और बढ़ गया
आज आँखों में कोई रात गए आएगा
हादसे शहर का दस्तूर बने जाते हैं
ज़मीन ले के वो आए तो घर बनाया जाए
शाइ'री रूह में तहलील नहीं हो पाती