बात से बात की गहराई चली जाती है
झूट आ जाए तो सच्चाई चली जाती है
Parveen Shakir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Gulzar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1892) Peoples Rate This
हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए
धुआँ धुआँ है फ़ज़ा रौशनी बहुत कम है
ज़रा से ग़म के लिए जान से गुज़र जाना
अकेले रहने की ख़ुद ही सज़ा क़ुबूल की है
झूटी मोहब्बत
चढ़ा हुआ है जो दरिया उतरने वाला है
नई आस्तीन
मैं जानता हूँ ख़ुशामद-पसंद कितना है
हुआ न ख़त्म अज़ाबों का सिलसिला अब तक
अब इस से मिलने की उम्मीद क्या गुमाँ भी नहीं
चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए