मैं जानता हूँ ख़ुशामद-पसंद कितना है
मैं जानता हूँ ख़ुशामद-पसंद कितना है
ये आसमान ज़मीं से बुलंद कितना है
तमाम रस्म उठा ली गई मोहब्बत में
दिलों के बीच मगर क़ैद-ओ-बंद कितना है
जो देखता है वही बोलता है लोगों से
ये आइना भी हक़ीक़त-पसंद कितना है
तमाम रात मिरे साथ जागता है कोई
वो अजनबी है मगर दर्द-मंद कितना है
मैं उस के बारे में अक्सर ये सोचता हूँ 'शकील'
खुला हुआ है वो इतना तो बंद कितना है
(1963) Peoples Rate This