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मैं जानता हूँ ख़ुशामद-पसंद कितना है - शकील आज़मी कविता - Darsaal

मैं जानता हूँ ख़ुशामद-पसंद कितना है

मैं जानता हूँ ख़ुशामद-पसंद कितना है

ये आसमान ज़मीं से बुलंद कितना है

तमाम रस्म उठा ली गई मोहब्बत में

दिलों के बीच मगर क़ैद-ओ-बंद कितना है

जो देखता है वही बोलता है लोगों से

ये आइना भी हक़ीक़त-पसंद कितना है

तमाम रात मिरे साथ जागता है कोई

वो अजनबी है मगर दर्द-मंद कितना है

मैं उस के बारे में अक्सर ये सोचता हूँ 'शकील'

खुला हुआ है वो इतना तो बंद कितना है

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In Hindi By Famous Poet Shakeel Azmi. is written by Shakeel Azmi. Complete Poem in Hindi by Shakeel Azmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.