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कुछ इस तरह से मिलें हम कि बात रह जाए - शकील आज़मी कविता - Darsaal

कुछ इस तरह से मिलें हम कि बात रह जाए

कुछ इस तरह से मिलें हम कि बात रह जाए

बिछड़ भी जाएँ तो हाथों में हात रह जाए

अब इस के बा'द का मौसम है सर्दियों वाला

तिरे बदन का कोई लम्स साथ रह जाए

मैं सो रहा हूँ तिरे ख़्वाब देखने के लिए

ये आरज़ू है कि आँखों में रात रह जाए

मैं डूब जाऊँ समुंदर की तेज़ लहरों में

किनारे रक्खी हुई काएनात रह जाए

'शकील' मुझ को समेटे कोई ज़माने तक

बिखर के चारों तरफ़ मेरी ज़ात रह जाए

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In Hindi By Famous Poet Shakeel Azmi. is written by Shakeel Azmi. Complete Poem in Hindi by Shakeel Azmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.