वो सामने था फिर भी कहाँ सामना हुआ
वो सामने था फिर भी कहाँ सामना हुआ
रहता है अपने नूर में सूरज छुपा हुआ
ऐ रौशनी की लहर कभी तो पलट के आ
तुझ को बुला रहा है दरीचा खुला हुआ
सैराब किस तरह हो ज़मीं दूर दूर की
साहिल ने है नदी को मुक़य्यद किया हुआ
ऐ दोस्त चश्म-ए-शौक़ ने देखा है बार-हा
बिजली से तेरा नाम घटा पर लिखा हुआ
पहचानते नहीं उसे महफ़िल में दोस्त भी
चेहरा हो जिस का गर्द-ए-अलम से अटा हुआ
इस दौर में ख़ुलूस का क्या काम ऐ 'शकेब'
क्यूँ कर चले बिसात पे मोहरा पिटा हुआ
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