सर-ए-रह अब न यूँ मुझ को पुकारो तुम ही आ जाओ
सर-ए-रह अब न यूँ मुझ को पुकारो तुम ही आ जाओ
ज़रा ज़हमत तो होगी राज़-दारो तुम ही आ जाओ
कहीं ऐसा न हो दम तोड़ दें हसरत से दीवाने
क़फ़स तक उन से मिलने को बहारो तुम ही आ जाओ
भरोसा क्या सफ़ीने का कई तूफ़ान हाइल हैं
हमारी ना-ख़ुदाई को किनारो तुम ही आ जाओ
अभी तक वो नहीं आए यक़ीनन रात बाक़ी है
हमारी ग़म-गुसारी को सितारो तुम ही आ जाओ
'शकेब'-ए-ग़म-ज़दा को दर्द से है अब कहाँ फ़ुर्सत
अगर कुछ वक़्त मिल जाए तो प्यारो तुम ही आ जाओ
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