समझ सको तो ये तिश्ना-लबी समुंदर है
समझ सको तो ये तिश्ना-लबी समुंदर है
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ हर इक आदमी समुंदर है
उभर के डूब गई कश्ती-ए-ख़याल कहीं
ये चाँद एक भँवर चाँदनी समुंदर है
जो दास्ताँ न बने दर्द-ए-बेकराँ है वही
जो आँख ही में रहे वो नमी समुंदर है
न सोचिए तो बहुत मुख़्तसर है सैल-ए-हयात
जो सोचिए तो यही ज़िंदगी समुंदर है
तू इस में डूब के शायद उभर सके न कभी
मिरे हबीब मिरी ख़ामुशी समुंदर है
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