मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा
मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा
मेरा साया है जो दीवार पे जम जाएगा
ठहरो ठहरो मिरे असनाम-ए-ख़याली ठहरो
मेरा दिल गोशा-ए-तन्हाई में घबराएगा
लोग देते रहे क्या क्या न दिलासे मुझ को
ज़ख़्म गहरा ही सही ज़ख़्म है भर जाएगा
अज़्म पुख़्ता ही सही तर्क-ए-वफ़ा का लेकिन
मुंतज़िर हूँ कोई आ कर मुझे समझाएगा
आँख झपके न कहीं राह अँधेरी ही सही
आगे चल कर वो किसी मोड़ पे मिल जाएगा
दिल सा अनमोल रतन कौन ख़रीदेगा 'शकेब'
जब बिकेगा तो ये बे-दाम ही बिक जाएगा
(609) Peoples Rate This