मिरे ख़ुलूस की शिद्दत से कोई डर भी गया
मिरे ख़ुलूस की शिद्दत से कोई डर भी गया
वो पास आ तो रहा था मगर ठहर भी गया
ये देखना था बचाने भी कोई आता है
अगर मैं डूब रहा था तो ख़ुद उभर भी गया
ऐ रास्ते के दरख़्तो समेट लो साया
तुम्हारे जाल से बच कर कोई गुज़र भी गया
किसी तरह से तुम्हारी जबीं चमक तो गई
ये और बात सियाही में हाथ भर भी गया
उसी पहाड़ ने फूंके थे क्या कई जंगल
जो ख़ाक हो के मिरे हाथ पर बिखर भी गया
यहीं कहीं मिरे होंटों के पास फिरता है
वो एक लफ़्ज़ कि जो ज़ेहन से उतर भी गया
वो शाख़ झूल गई जिस पे पाँव क़ाएम थे
'शकेब' वर्ना मिरा हाथ ता-समर भी गया
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