Ghazals of Shakeb Jalali (page 1)
नाम | शकेब जलाली |
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अंग्रेज़ी नाम | Shakeb Jalali |
जन्म की तारीख | 1934 |
मौत की तिथि | 1966 |
जन्म स्थान | Pakistan |
ये जल्वा-गाह-ए-नाज़ तमाशाइयों से है
वो सामने था फिर भी कहाँ सामना हुआ
वही झुकी हुई बेलें वही दरीचा था
वहाँ की रौशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत
तू ने क्या क्या न ऐ ज़िंदगी दश्त ओ दर में फिराया मुझे
शफ़क़ जो रू-ए-सहर पर गुलाल मलने लगी
सर-ए-रह अब न यूँ मुझ को पुकारो तुम ही आ जाओ
समझ सको तो ये तिश्ना-लबी समुंदर है
साहिल तमाम अश्क-ए-नदामत से अट गया
रुख़्सार आज धो कर शबनम ने पंखुड़ी के
रौशन हैं दिल के दाग़ न आँखों के शब-चराग़
फिर सुन रहा हूँ गुज़रे ज़माने की चाप को
पर्दा-ए-शब की ओट में ज़ोहरा-जमाल खो गए
नक़ाब-ए-रुख़ उठाया जा रहा है
मुरझा के काली झील में गिरते हुए भी देख
मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा
मीठे चश्मों से ख़ुनुक छाँव से दूर
मिरे ख़ुलूस की शिद्दत से कोई डर भी गया
मौज-ए-सबा रवाँ हुई रक़्स-ए-जुनूँ भी चाहिए
मौज-ए-ग़म इस लिए शायद नहीं गुज़री सर से
मरीज़-ए-ग़म के सहारो कोई तो बात करो
मैं शाख़ से उड़ा था सितारों की आस में
क्या कहिए कि अब उस की सदा तक नहीं आती
क्या जानिए मंज़िल है कहाँ जाते हैं किस सम्त
क्या चीज़ है ये सई-ए-पैहम क्या जज़्बा-ए-कामिल होता है
कोई इस दिल का हाल क्या जाने
ख़्वाब-ए-गुल-रंग के अंजाम पे रोना आया
ख़िज़ाँ के चाँद ने पूछा ये झुक के खिड़की में
ख़िरद फ़रेब-ए-नज़ारों की कोई बात करो
ख़मोशी बोल उठ्ठे हर नज़र पैग़ाम हो जाए