शकेब जलाली कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शकेब जलाली (page 3)
नाम | शकेब जलाली |
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अंग्रेज़ी नाम | Shakeb Jalali |
जन्म की तारीख | 1934 |
मौत की तिथि | 1966 |
जन्म स्थान | Pakistan |
मुरझा के काली झील में गिरते हुए भी देख
मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा
मीठे चश्मों से ख़ुनुक छाँव से दूर
मिरे ख़ुलूस की शिद्दत से कोई डर भी गया
मौज-ए-सबा रवाँ हुई रक़्स-ए-जुनूँ भी चाहिए
मौज-ए-ग़म इस लिए शायद नहीं गुज़री सर से
मरीज़-ए-ग़म के सहारो कोई तो बात करो
मैं शाख़ से उड़ा था सितारों की आस में
क्या कहिए कि अब उस की सदा तक नहीं आती
क्या जानिए मंज़िल है कहाँ जाते हैं किस सम्त
क्या चीज़ है ये सई-ए-पैहम क्या जज़्बा-ए-कामिल होता है
कोई इस दिल का हाल क्या जाने
ख़्वाब-ए-गुल-रंग के अंजाम पे रोना आया
ख़िज़ाँ के चाँद ने पूछा ये झुक के खिड़की में
ख़िरद फ़रेब-ए-नज़ारों की कोई बात करो
ख़मोशी बोल उठ्ठे हर नज़र पैग़ाम हो जाए
कनार-ए-आब खड़ा ख़ुद से कह रहा है कोई
कहाँ रुकेंगे मुसाफ़िर नए ज़मानों के
जिस दम क़फ़स में मौसम-ए-गुल की ख़बर गई
जाती है धूप उजले परों को समेट के
जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है
जब तक ग़म-ए-जहाँ के हवाले हुए नहीं
इश्क़ के ग़म-गुसार हैं हम लोग
इस ख़ाक-दाँ में अब तक बाक़ी हैं कुछ शरर से
इस बुत-कदे में तू जो हसीं-तर लगा मुझे
हवा-ए-शब से न बुझते हैं और न जलते हैं
हम-जिंस अगर मिले न कोई आसमान पर
गूँजता है नाला-ए-महताब आधी रात को
ग़म-ए-उल्फ़त मिरे चेहरे से अयाँ क्यूँ न हुआ
ग़म-ए-हयात की लज़्ज़त बदलती रहती है