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हवस-ए-वक़्त का अंदाज़ा लगाया जाए - शकेब अयाज़ कविता - Darsaal

हवस-ए-वक़्त का अंदाज़ा लगाया जाए

हवस-ए-वक़्त का अंदाज़ा लगाया जाए

रात पागल हुई दरवाज़ा लगाया जाए

आश्ना शहर की आँखों में नया शख़्स लगूँ

ऐसा चेहरे पे कोई ग़ाज़ा लगाया जाए

बीते मौसम में जो फल आए कसीले निकले

अब कोई पेड़ यहाँ ताज़ा लगाया जाए

भागते दौड़ते शहरों को पिन्हा कर ज़ंजीर

ख़ल्वत-ए-जाँ का भी अंदाज़ा लगाया जाए

मैं बिखर जाऊँ न काग़ज़ की तरह कमरे में

तेज़ तूफ़ान है दरवाज़ा लगाया जाए

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In Hindi By Famous Poet Shakeb Ayaz. is written by Shakeb Ayaz. Complete Poem in Hindi by Shakeb Ayaz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.