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समझ में आती है बादल की आह-ओ-ज़ारी अब - शाइस्ता यूसुफ़ कविता - Darsaal

समझ में आती है बादल की आह-ओ-ज़ारी अब

समझ में आती है बादल की आह-ओ-ज़ारी अब

वो मेहरबान मुझे भी बहुत रुलाता है

मुमासलत ही नहीं साथ रहने वालों में

कोई बताए मुझे किस से मेरा नाता है

लगा कि क़ुफ़्ल मिरे ख़्वाब के दरीचों को

तिरा ख़याल अज़ाबों से क्यूँ डराता है

समझ में आता नहीं ज़िंदा हैं कि मुर्दा हैं

कभी तो मारता है और कभी जिलाता है

हज़ारों तारे हैं तेरी हथेलियों में मगर

तू आ के घर से मेरे चाँद क्यूँ चुराता है

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In Hindi By Famous Poet Shaista Yusuf. is written by Shaista Yusuf. Complete Poem in Hindi by Shaista Yusuf. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.